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नाना॑ चक्राते य॒म्या॒३॒॑ वपूं॑षि॒ तयो॑र॒न्यद्रोच॑ते कृ॒ष्णम॒न्यत्। श्यावी॑ च॒ यदरु॑षी च॒ स्वसा॑रौ म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nānā cakrāte yamyā vapūṁṣi tayor anyad rocate kṛṣṇam anyat | śyāvī ca yad aruṣī ca svasārau mahad devānām asuratvam ekam ||

पद पाठ

नाना॑। च॒क्रा॒ते॒ इति॑। य॒म्या॑। वपूं॑षि। तयोः॑। अ॒न्यत्। रोच॑ते। कृ॒ष्णम्। अ॒न्यत्। श्यावी॑। च॒। यत्। अरु॑षी। च॒। स्वसा॑रौ। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:55» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

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पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (देवानाम्) पृथिवी आदिकों के समीप से (महत्) बड़ा (एकम्) द्वितीय रहित (असुरत्वम्) दोषों को फेंकनेवाला है उससे व्यवस्थापित (यत्) जो (श्यावी) अन्धकाररूप (यम्या) जो सम्पूर्ण प्राणियों को निद्रा से युक्त करती है वह रात्रि (च) और (अरुषी) प्रकाशरूप प्रातःकाल (स्वसारौ) भगिनी के सदृश वर्त्तमान हुए (नाना) अनेक प्रकार के (वपूंषि) रूपों को (चक्राते) करते हैं (तयोः) उनका (अन्यत्) अन्य प्रातःकाल रूप (रोचते) प्रकाशित होता है (च) और (कृष्णम्) काला बेकाम (अन्यत्) दूसरा वर्ण रात्रिरूप जो आवरण करता है, वह जिससे प्रसिद्ध, उसको ब्रह्म जानो ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो परमेश्वर पृथिवी और सूर्य्य के घूमने की अवस्था को न करे तो रात्रि और दिन कैसे होवें और जिस जगदीश्वर ने पुरुषार्थ के लिये दिन और शयन करने के लिये रात्रि रची, उस ईश्वर का हृदय में सब ध्यान करो ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

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अन्वय:

हे मनुष्या यद्देवानां महदेकमसुरत्वमस्ति तेन व्यवस्थापिते यत् या श्यावी यम्या चाऽरुषी स्वसाराविव वर्त्तमाने सत्यौ नाना वपूंषि चक्राते तयोरन्यदुषोरूपं रोचते च कृष्णमन्यद्रात्रिरूपमावृणोति तद्ब्रह्म विजानीत ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नाना) अनेकानि (चक्राते) कुरुतः (यम्या) या सर्वान् प्राणिनो निद्रया नियच्छति सा रात्रिः। यम्येति रात्रिना०। निघं० १। ७। (वपूंषि) रूपाणि। वपुरिति रूपना०। निघं० ३। ७। (तयोः) (अन्यत्) (रोचते) प्रकाशते (कृष्णम्) निकृष्टवर्णं तमः (अन्यत्) द्वितीयमावृणोति (श्यावी) अन्धकाररूपा (च) (यत्) या (अरुषी) प्रकाशरूपोषा (च) (स्वसारौ) भगिन्याविव वर्त्तमाने (महत्) बृहत् (देवानाम्) पृथिव्यादीनां सकाशात् (असुरत्वम्) (एकम्) ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि परमेश्वरो भूमेः सूर्य्यस्य च भ्रमणस्य व्यवस्थां न कुर्य्यात्तर्हि रात्रिदिने कथं सम्भवेतां येन जगदीश्वरेण पुरुषार्थाय दिनं शयनाय शर्वरी निर्मिता तमीश्वरं हृदि सर्वे ध्यायन्तु ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. परमेश्वराने पृथ्वी व सूर्याच्या परिवलन व परिभ्रमणाची व्यवस्था केली नसती तर रात्र व दिवस कसे झाले असते? ज्या जगदीश्वराने पुरुषार्थासाठी दिवस व शयन करण्यासाठी रात्र निर्माण केलेली आहे. त्या परमेश्वराचे हृदयात ध्यान करा. ॥ ११ ॥